जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 07 दिसम्बर, 2024 ::
अपनी मांगों को लेकर किसान संगठनों ने एक वार फिर दिल्ली की ओर कूच किया है। जबकि उन्हें बलपूर्वक बॉर्डरों पर ही रोका गया है। दिल्ली-एनसीआर में एक बार फिर महौल बिगड़ते दिखाई पड़ रहा है। आम लोग आंदोलन की वजह से होने वाली परेशानी से भयभीत हैं। किसानों का आरोप है कि केन्द्र सरकार ने फरवरी के बाद से बातचीत नहीं की है। जबकि सरकार के प्रतिनिधियों को किसानों से बातचीत करनी चाहिए थी, क्योंकि बिना बातचीत के कोई समाधान नहीं निकल सकता है।
किसान स्वामीनाथन आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए कानून बनाने, खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफी और भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की बहाली, की मांग कर रहे हैं। किसान आंदोलन में अभी से ही राजनीतिक दलों के झंडे दिखने लगे हैं। किसानों ने सोमवार को नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल के पास पुलिस अवरोधकों को तोड़ दिया था और दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन पुलिस और प्रशासन की ओर से सुलह के प्रयास लगातार चली, जिसके कारण जाम की स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही।
वर्तमान समय में संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 लागू कर रखी है। ऐसे में किसानों के 'दिल्ली चलो' आह्वान को, गंभीरता से लेना होगा। अब प्रश्न उठता है कि अन्नदाताओं की समस्याओं का समाधान आखिर कब होगा? किसानों की दिल्ली चलो आंदोलन से मरीज, छात्र, राहगीर, दैनिक कर्मी तो बेहाल होते ही हैं, साथ ही रोज की क्रियाकलाप में संलग्न रहने वाले भी प्रभावित होते हैं। किसान संगठनों ने एक बार फिर दिल्ली पर चढ़ाई करने का प्रयास कर रहे हैं। किसान आंदोलन करने के मूड में दिख रहे है। यदि उनकी रामस्याओं का समाधान समय रहते नहीं हुआ तो हालात पिछले किसान आंदोलन जैसे बनने लगेगा। किसान केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को बीते एक महीने से अल्टीमेटम दे रहे थे कि उनकी गांगे मानी जाए और इसके लिए उनसे बात करें ताकि दोनों पक्ष में कोई हल निकल सकें।
याद होगा कि एक बार किसानों का ऐसा मार्च देखा है, जो लाल किले तक पहुंच गया था। आजकल किसी भी भीड़ को अनियंत्रित होने में समय नहीं लगता है। देश अभी भूला नहीं है कि किसानों की भीड़ अनियंत्रित होकर लाल किले में उपद्रव की वजह बन गई थी। क्या कोई किसान नेता इस तरह की पुनरावृति नहीं हो इसकी गारंटी ले सकता है? किसानों का आरोप है कि केन्द्र सरकार ने फरवरी के बाद से बातचीत नहीं की है। अतः सरकार के प्रतिनिधियों को किसानों से बातचीत करनी चाहिए, बिना बातचीत के समाधान निकलना सम्भव नहीं होगा।
किसानों को बार-बार दिल्ली कूच क्यों करना पड़ता है? किसान तीसरी बार देश की राजधानी दिल्ली की ओर कूच कर रहा हैं। लेकिन दिख रहा है कि आंदोलनकारी किसान संगठनों में फूट पड़ गई है। किसानों का मानना है कि सरकार उनकी मांगों को मानना ही नहीं चाहती है। देश में किसान आंदोलन की शुरुआत 2020 में कोरोना काल के दौरान ही एनडीए सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के विरोध में हुई थी और सरकार को कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। इस बार 40 किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चे (एसकेएम) ने किसान आंदोलन से दूरी बना ली है। किसान नेता राकेश टिकैत भी इस आंदोलन से दूर दिख रहे है। हरियाणा के किसान भी अलग दिख रहे हैं। हालांकि इस बार भी किसानों की मुख्य मांग फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों के मुद्दे के निराकरण के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित कर दी है। सूत्रों की माने तो केन्द्रीय कृषि मंत्री ने बताया है कि एनडीए सरकार पिछले 10 वर्षों से एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी कर रही है और सरकार उपज, एमएसपी दर पर खरीदती रहेगी। सरकार 50 प्रतिशत से ज्यादा का एमएसपी तय करने के साथ ही किसानों से उपज भी खरीदेगी। केन्द्र सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार कटिबद्ध हैं, प्रतिबद्ध हैं कि कम से कम 50 प्रतिशत से ज्यादा लाभ देकर किसानों की फसलें खरीदेंगे। सरकार बहुत दूरदर्शिता से काम करती है। किसानों का कल्याण और विकास सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। कृषि के लिए बजट आवंटन में अभूतपूर्व वृद्धि भी की गई है। किसान कल्याण के लिए सरकार की प्राथमिकताएं है, उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पादन का उचित मूल्य देना, फसल में अगर नुकसान हो तो उसकी भरपाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के द्वारा करना, कृषि का विविधीकरण करना। केन्द्र सरकार फर्टिलाइजर के साथ साथ सब्सिडी भी उपलब्ध करा रही हैं। केमिकल फर्टिलाइजर के असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग के कारण जो नुकसान होते हैं, उसके लिए भी जागरूकता पैदा किया जा रहा हैं।
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