लाल बहादुर शास्त्री जी का पहचान सादगी, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ का था*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 30 सितम्बर, 2024 ::

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 02 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के समीप मुगलसराय में हुआ था। वे 20 वर्ष के उम्र में स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गए थे।  भारत की क्रांति के प्रमुख नेताओं में से एक थे। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे। उनका पूरा जीवन सादगी और अनुशासन के साथ बिता था। लाल बहादुर शास्त्री जी देशप्रेम और त्याग के रूप में याद किए जाते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा के साथ काम किए थे। इसलिए उनकी पहचान सादगी, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ का रहा था और इसके कायल आज भी लोग हैं। इन्होंने धर्मनिरपेक्षता के विचार को बढ़ावा दिया था।

देश को ‘‘जय जवान जय किसान’’ का नारा देकर लोगों को एक रहने और देशभक्त बनने का सुझाव दिया था लाल बहादुर शास्त्री जी।  लाल बहादुर शास्त्री जी का कार्यशैली देश और समाज के प्रति समर्पित था। उन्होंने अपनी सादगी जीवन में रहकर देश की सेवा और समाज की सेवा कैसे किया जा सकता है, उसका मार्ग प्रशस्त किया था। हम लोगों को उनके द्वारा दर्शाये मार्गदर्शन पर अमल करने की आवश्यकता है। 

लाल बहादुर शास्त्री जी 1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री रहे थे। इन्हीं के शासनकाल में 1965 में भारत -पाकिस्तान युद्ध हुआ था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को करारा शिकस्त दिया था। यह युद्ध 22 दिन तक चला था। इन्होंने छोटे से कार्यकाल में किसान और मजदूर वर्ग के हालात सुधारने के लिए कई फैसले लिए थे, जिससे देश को एक नई दिशा मिली थी।

लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने मंत्रित्व काल में जब वे उत्तरप्रदेश के पुलिस विभाग में मंत्री थे तो उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस द्वारा लाठी चलाये जाने के जगह पानी का बौछार करने का प्रयोग किया था, जो सफल प्रयोग कहा जाता है, क्योंकि आज भी देश के सभी राज्यों में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पानी का बौछौर किया जाता है। इसी तरह उत्तरप्रदेश में ही परिवहन विभाग के मंत्री की हैसियत से उन्होंने पहलीबार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति करने का प्रयोग किया, यह भी सफल प्रयोग रहा।  आज की प्रपेक्ष्य में कहा जाय तो देश के सभी राज्यों में लगभग सभी विभागों द्वारा महिलाओं की सेवा ली जा रही है। बिहार राज्य भी इससे अछूता नहीं है बल्कि बढ़चढ़ कर महिलाओं को त्बजो देकर हर क्षेत्र में उसे आगे बढ़ाया है। इसका एक छोटा सा उदाहरण है कि महिला पुलिस सेवा में सड़कों पर आप आमदिन पेट्रोलिंग करते हुए या चौक - चौराहे पर यातायात को नियंत्रित करते हुए देखे जाते है। ये महिलाएं कड़ी धूप में, बरसात में, कड़क की ढंढ को आसानी से सहते हुए समाज सेवा निःसंकोच भाव से कर रही है।

भारतीय सेना ने जब पाकिस्तान को शिकस्त दे रहा था तो अमेरिका ने अपने नागरिकों को लौहौर से बाहर निकालने के लिए युद्ध विराम के लिए अनुरोध किया था और रुस - अमेरिका के अनुरोध पर प्रधानमंत्री को ताशकंद समझौता में बुलाया गया था जहां संदिग्ध अवस्था में 11 जनवरी, 1966 की रात निधन हो गया था। यह आजतक रहस्य बना हुआ है। 

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