बगलामुखी देवी को ही कहते हैं पीताम्बरा देवी - शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए किए जाते हैं उपासना







बैजू कुमार , पटना, 27 मई ::


बगलामुखी महाविद्याओं दस महाविद्या ओ सबसे श्रेष्ठ देवी मानी जाति है। काली4, तारा क्षिणमास्तिक, बंगला, बराही धूमावती , दस महाविद्याओं कि देवी हैं। ये देवियां बहुत ही उग्र देवी मानी जाति हैं।


सिंधू घाटी कि सभ्यता से उनकी उत्पति हुई हैं। नीले रंग के जल से मां बंगला मुखी का उत्पति हुआ है।


बगलामुखी देवी के चार स्वरूप हैं। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। 

देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। बगलामुखी देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। बगलामुखी देवी, विशेषकर चंपा फूल, पीले कनेल का फूल,हल्दी की गांठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं। यह रत्नमय सिहाशन पर हैं पर आरूढ़ हो शत्रुओं का विनाश करती हैं। मां बंगलामुखी कि आराधना सच्चे मन से किया जाए तो मां सुखसमृद्धि धन्य धान, येशवरी और पुत्र रत्न की प्राप्ति कि जाति हैं।

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